कहा जाता है कि हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है। तभी तो छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन गांवों की चमक दोगुनी बढ़ जाती है।  जानिये  छत्तीसगढ़ में कैसी मनाई जाती है ग्रामीण अंचल एवं शहरों मे ,,दीवाली त्यौहार,,

कहा जाता है कि हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है। तभी तो छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन गांवों की चमक दोगुनी बढ़ जाती है।   जानिये  छत्तीसगढ़ में कैसी मनाई जाती है ग्रामीण अंचल एवं शहरों मे ,,दीवाली त्यौहार,,
कहा जाता है कि हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है। तभी तो छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन गांवों की चमक दोगुनी बढ़ जाती है।   जानिये  छत्तीसगढ़ में कैसी मनाई जाती है ग्रामीण अंचल एवं शहरों मे ,,दीवाली त्यौहार,,

 

 कहा जाता है कि हमारे देश की आत्मा गांवों में बसती है। तभी तो छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन गांवों की चमक दोगुनी बढ़ जाती है।

 जानिये  छत्तीसगढ़ में कैसी मनाई जाती है ग्रामीण अंचल एवं शहरों मे ,,दीवाली त्यौहार,,

 

 

   बालोद:-कहते हैं भारत की आत्मा गांवों में बसती है। तभी तो छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन गांवों की चमक दोगुनी बढ़ जाती है।

  जी हां हम देश के सबसे बड़े त्योहार दीपावली पर्व पर छत्तीसगढ़ में मनाई जाने वाली गौरा-गौरी को शुक्रवार धनतेरश की रात को गाजे बाजे व् गीत के साथ जगाया जाता हैं।

  इस दिन के बाद से गवरा चौरा में आदिवासी समाज की महिलाए एकत्रित होकर गौरा गवरी का गीत गाकर प्रसन्न किया जाता हैं।

 शहर सहित ग्रामीण अंचलो में गवरा गवरी का विवाह बड़े धूम धाम के साथ मनाया जाता हैं।जिसमे पूरा मुहल्ले और पूरा गावो का सहयोग रहता हैं।

◆◆ धनतेरस की रात से शुरू होता है जगार ◆◆

 छत्तीसगढ़ की पहचान गोड़, बैगा आदिवासी जनजातियों से होती है। क्षेत्रीय सांस्कृतिक मानव जीवन की नैसर्गिक सुखों की यह एक जीती-जागती परम्परा है जो आज भी प्रदेश में बड़े उत्साह एवं श्रध्दा से मनाते आ रहे हैं।

  जिसकी शुरूआत धनतेरस की रात से धनवंतरी की पूजा कर होती है। इस दिन  आदिवासी लोग दिनभर खरीदारी के बाद रात में धनतेरस के दिए जलाकर पूरे विधि-विधान से ग्रामीणों के साथ गौरा-गौरा (शिव-पार्वती) जगार करते हैं।

  इस जगार में महिलाएं एक स्वर में गीत-गाते है, और पुरुष वर्ग ढोलक डमऊ, दफड़ा, गुदूम जैसे वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य कर पूरे इलाके में भक्ति का संचार करते हैं।

  यह छत्तीसगढ़ धरती की पुरानी परम्परा एवं लोक संस्कृति का जीवंत उदाहरण है।

◆◆ लक्ष्मी की पूजा कर रात में परघाते हैं करसा, पूजते हैं गौरा-गौरी ◆◆

   दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा के बाद गौरा-गौरी की मूर्ति बनाई जाती है। इसे कुंवारी लड़कियां सिर पर कलश सहित रखकर मोहल्ले-गांव का भ्रमण करती हैं।

  टोकरीनुमा कलश में दूध में उबाले गए चावल के आटा से बना प्रसाद रखा जाता है। जिसे दूधफरा कहा जाता है।

  इसमें घी-तेल का उपयोग नहीं किया जाता है। यही पकवान गौरा-गौरी को भोग लगाया जाता है। जिसे दूसरे दिन सभी लोग ग्रहण करते हैं।

  सबसे खास बात यह है कि लक्ष्मी पूजा के दिन दोपहर में गांव के तलाब से मिट्टी लाया जाता हैं, उक्त मिट्टी से अलग अलग स्थानों में गौरा गौरी की मूर्ति बनाई जाती हैं, जिसके बाद विवाह की तैयारी की जाती हैं।गौरा की और से ग्रामीण गौवरी के धर बरात लेकर आते हैं, वही गौवरी के तरफ से ग्रामीण बरात का स्वागत करते हैं जिसके बाद शादी की पूरी रस्में इसी रात में पूरी की जाती है।और गौवरा गौवरी को गौवरा चौरा में रखा जाता हैं।

  जिसका गोवर्धन पूजा के दिन सुबह विधी विधान के साथ तलाब में विसर्जित किया जाता हैं। यह छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी जनजातियों गोड़ जाति के लिए सबसे प्रमुख है।

◆◆ घर-घर होगी गोवर्धन पूजा ◆◆

  माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ.धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है।

  आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है। मान्यता है कि गोवर्धन पूजा के दिन यदि कोई दुखी है, तो पूरे वर्ष भर दुखी रहेगा इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए।

   ◆◆ मातर की रहती है धूम ◆◆

  दिवाली के चौथे दिन 15 नवंबर को ग्रामीन अंचलों में दिन में मातर व शाम को मड़ई की धूम रहती है। इस दिन राउत जनजाति के लोग मैदान में गायों की झुंड के बीच हैरतंगेज करतब दिखते हैं।

  और शाम को मड़ई का अयोजन करते हैं। मान्यता है कि मड़ई का आयोजन करने से गांव में बुरी आत्माओं का प्रवेश नहीं होता है।

रिपोर्ट खास :- अरुण उपाध्याय बालोद, मो नम्बर :- 94255 72406