आज नवरात्रि की सप्तमी दिवस पर, पाटेश्वर धाम में सुहागिन माताओ के पूजा का आयोजन किया गया

आज नवरात्रि की सप्तमी दिवस पर, पाटेश्वर धाम में सुहागिन माताओ के पूजा का आयोजन किया गया
आज नवरात्रि की सप्तमी दिवस पर, पाटेश्वर धाम में सुहागिन माताओ के पूजा का आयोजन किया गया

 

आज नवरात्रि की सप्तमी दिवस पर, पाटेश्वर धाम में सुहागिन माताओ के पूजा का आयोजन किया गया जिसमें सीता रसोई मैं स्वयं संत राम बालक दास जी द्वारा सुहागिन पूजा के साथ सौभाग्य सामग्री साड़ी इत्यादि उन्हें प्रसादी वितरण किया गया, आज की सप्तमी दिवस पर सुहागिनों की पूजा का विशेष महत्व होता है
                   नवरात्रि की सप्तमी दिवस के महत्व को बताते हुए बाबा जी ने बताया कि, सप्तमी मां कालरात्रि का पर्व है माता कालरात्रि जिन्होंने चंड मुंड का संहार किया विकराल रूप धारण करके दानवों का नाश करके सभी समस्त जगत को दानव  मुक्त कराया ऐसी माता कालरात्रि को आज के दिन रात्रि के समय संध्या 6:00 बजे से रात्रि 9:00 बजे या रात्रि 9:00 से 11:00 बजे सुंदर चौकी का आसन सजा करके उसमें पूजन पाठ करके फिर उन्हें प्रसादी चढ़ा स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए, आज का दिन माता शीतला सप्तमी का दिन होता है, माता शीतला जो गधे पर सवार हैं उनकी आज विशेष पूजा अर्चना की जाती है
       आज ऑनलाइन सत्संग परिचर्चा में बाबा जी ने रामचरितमानस की चौपाइयां काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ ....... के भावों को सत्संग में बताया, हमारे जीवन में पांच प्रकार के विकार हैं जो जीवन के अमूल्य क्षण को खराब कर देते हैं हमें प्रयास करना चाहिए कि जीवन में काम का क्रोध का मद का आवेग ना आवे उसी प्रकार आशाओं का भी उद्वेग हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है, हमें इन पर संयम रखना अति आवश्यक है, ऐसा नहीं कि कोई भी व्यक्ति इतना महान है कि जिस में काम क्रोध मद मोह लोभ यह पांच विकार ना हो यह पांचों विकार तो हमारे साथ जन्मजात ही होते हैं बस इसे किस तरह हमें संयमित रखना है यह हमारे जीवन शैली पर निर्भर करता है, हममें इतना संयम होना चाहिए कि हम इनके वशीभूत ना होकर इन्हें बलबती ना होने दें, 
          इन विकारों में एक अभिमान ऐसा विकार है जो मनुष्य को अंदर से खोखला करता है हमें अभिमान कभी नहीं करना चाहिए यदि हमें अभिमान करना ही है तो मनुष्य के जीवन को पूर्णता सार्थक बनाने के लिए करना चाहिए अपना जीवन सार्थक बनाएं तो अभिमान करे कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं तो हमें अभिमान करना चाहिए स्वयं सब कष्ट सहकर दूसरों का प्रसन्न कर रहे हैं तो भी हमें निश्चित ही अभिमान होना चाहिए प्रभु के मिलन के हेतु हम सत्संग कर रहे हैं तो उस पर भी हमें गर्व और अभिमान होना चाहिए 
      दूसरा फिर काम आता है काम, आप के   जीवन में धर्म के समान काम भी मुख्य है परंतु उससे आप की  प्रभु भक्ति कभी प्रभावित नहीं होनी चाहिए काम करते हुए भी हृदय में राम जी का सुमिरन करते रहे काम भी भजन बन जाएगा, काम का एक पहलू शरीर सुख या विषय बिलास  का भी है जिस पर हम ब्रह्मचर्य द्वारा अंकुश लगा सकते हैं
                  अब आता है क्रोध, जोकि पापों का मूल है क्रोध से व्यक्ति अंधा होकर विभिन्न अपराधों को जन्म देता है तो क्रोध पर अंकुश लगाना अत्यधिक आवश्यक होता है जीवन में क्रोध भी होना चाहिए परंतु उसका स्वरूप कल्याणकारी होना चाहिए किसी को बचाने के लिए सद  मार्ग पर लाने के लिए गौ माता की रक्षा के लिए धर्म की रक्षा के लिए आप क्रोध अवश्य करें लेकिन उस से वशीभूत नहीं होना चाहिए क्रोध में आकर संयम कभी नहीं खोना चाहिए
         क्रोध का ही दूसरा रूप है द्वेष और द्वेष ही दुश्मनी का कारण होता है और यही भाव हमसे हत्या जैसे जघन्य अपराध भी करा देते हैं
       उसी प्रकार विकारों में मद और मोह मनुष्य के प्रमुख अवगुण है, इन पर भी काबू नहीं पाए तो वह हमें नाश  की ओर ले जाता है जो हमें नाश की ओर ले जाता है उसी को हम छोड़ नहीं पाते इसी को हम लोभ कहते है जैसे मांस खाना नशा करना धन का लोभ करना जो कि हमें विनाश की ओर ले जाता है फिर भी हम इसका मोह  करते हैं और इसे पाने के लिए आतुर हो जाते हैं और जब इसे नहीं  पाते  तो अपराधो को हम जन्म देते हैं सुंदर वस्तुओं को देखना भी मोह  को जन्म देता है और जब हम में इसकी प्राप्ति नहीं होती तो हम विभिन्न रूपों में कुकृत्य कर बैठते हैं
        आज के समय में काम क्रोध मद मोह लोभ होना तय है पर उस पर संतुलन हमारे ही बस में होना चाहिए विकारों का नाश ना भी हो तो भी उनको अपने पैरों तले दबाने का हममें बल होना चाहिए ऐसे लोगों से कभी मित्रता ना करें जिनके स्वयं के विचार स्थिर  नहीं जो पल-पल बदलते हैं ऐसे लोगों से हमें दूर ही रहना चाहिए परंतु उनसे शत्रुता  भी नहीं करनी चाहिए ऐसे ही अपने इंद्रियों को संयमित रखने हेतु संयम  का पालन करना चाहिए अनुशासित दिनचर्या जीना चाहिए समय पर उठे योगासन करें ध्यान करें संयमित भोजन करें समय पर सोए तो इंद्रियों को भी वश में किया जा सकता है हमारा शरीर पूर्णतः स्वस्थ हो ऐसा नहीं होता  कोई ना कोई रोग विद्यमान होता है चाहे वह वात के रूप में हो या पित्त के रूप में कुछ ना कुछ अवश्य रहता है जिन को संयमित करने हेतु हमारे रक्त में पीएच लेवल बना रहता है वैसे ही ऐसे मानसिक और चित्त बुद्धियों को प्रभावित करने वाले यह विषय विकार आपके जीवन में सदैव बने रहेंगे जन्म से मृत्यु तक परंतु इन्हें संतुलित करने हेतु आपको अपने विवेक को जागृत करना होगा और वह विवेक की जागृति केवल सत्संग से प्राप्त होगी सत्संग में जीवन के सौंदर्यता दृढ़ता सौम्यता, क्रोध रहित जीवन विकार  को दूर करने वाला जीवन और अपराधियों को भी क्षमा करने वाले गुण विकसित होते हैं इसलिए हमें इन पांचों विकारों को दूर करना हो तो सत्संगी होना आवश्यक हो जाता है, 
       संत कबीर जी ने कहा भी है कि मोह  मरे माया मरे मर मर जाए शरीर तो आइए हम संकल्प ले की हम कभी भी इन पांच विकारों में नहीं बंधेगे  परमात्मा के दिए इस अमूल्य शरीर दुर्लभ मनुष्य जीवन को व्यर्थ नहीं जाने देंगे खुश रहेंगे और दूसरों को भी सदैव खुश करेंगे 
           पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखी की प्रभु को पाने के लिए किस तरह की चाह होनी चाहिए, बाबा बालक दास जी ने प्रभु मिलन का मार्ग बताते हुए कहा कि सबसे पहले तो चाह किससे की जाती है और जहां चाह होती है वहां रिश्ता कैसा है यह  विषय आवश्यक हो जाता है जिस भी रिश्ते में यदि चाह तो वहां स्वार्थ आ जाता है वैसे ही प्रभु से यदि आपने रिश्ता बना लिया है तो उसमें किसी चीज की चाह नहीं रह जाती क्योंकि प्रभु से रिश्ता बन जाने पर तो प्रभु स्वयं ही जानते हैं कि आपके मन में क्या है इसलिए प्रभु से रिश्ता बनने के बाद उनसे किसी भी चीज की चाह नहीं होनी चाहिए वह निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति और प्रेम है
 इस प्रकार आज का आनंददायक सत्संग पूर्ण हुआ
 जय गौ माता जय गोपाल जय सिया राम
खबरी टी डी मानिकपुरी