पाटेश्वर धाम के द्वारा 6 महीने से आयोजित ऑनलाइन सत्संग के कारण

पाटेश्वर धाम के द्वारा 6 महीने से आयोजित ऑनलाइन सत्संग के  कारण

 
डौंडीलोहारा//आज के ऑनलाइन सत्संग परिचर्चा में रिचा बहन के सुविचार का विस्तार करते हुए बाबा जी ने बताया कि शरीर तो जलकर राख हो जाता है पापों का बोझ आत्मा को ढोना  होता है परंतु आत्मा के विषय में यह सत्य है कि आत्मा अजर अमर  अविनाशी है आत्मा पर पाप पुण्य का कोई फर्क नहीं पड़ता वह तो एक शरीर से दूसरे शरीर में जाकर नया जीवन ले लेती है इसीलिए आत्मा को परमात्मा का रूप कहा गया है परंतु जो व्यक्ति मन में संकल्प विकल्प ले लेता है वही संकल्प विकल्प के अनुसार उसे पुनर्जन्म में अलग-अलग रूपों से गुजरना पड़ता है अतः यह कहना उचित है कि आत्मा पर पाप का बोझ अर्थात उन संकल्पों का बोझ पड़ जाता है अतः बिना किसी संकल्प का जीवन जिए अर्थात निर्विकार जीवन जीये 
           आत्म ज्ञान विषय को आगे बढ़ाते हुए रिचा बहन ने प्रश्न किया कि यदि आत्मा अजर अमर है तो जन्म किसका होता है, गीता में भगवान श्री कृष्ण जी ने कहा है कि आत्मा अमर है ना उसे कोई जला सकता है ना ही कोई भेद सकता है ना ही कोई गिला कर सकता ना ही कोई सुख आ सकता है वह कभी नहीं मरती हमारे उपनिषद  व मनु समितियों में कहा गया है कि मनुष्य जो भी संकल्प लेता है वह उसके मन मस्तिष्क पर प्रभावी रहता है और जिन संकल्पों को वह पूर्ण नहीं कर पाता या जो वह गलतियां करता है उसके प्रायश्चित हेतु उसे पुनः नवीन शरीर का सहारा लेकर पुनर्जन्म लेना पड़ता है क्योंकि शरीर नश्वर है आत्मा नहीं मरती इसीलिए मन मष्तिष्क  में फैला हुआ संकल्प विचार या फिर उसके द्वारा की गई दुर्भावनाओं के विकार को भोगने हेतु पुनः जन्म लेता है
             इसी विषय पर रुद्रकांत यादव जी की जिज्ञासा का उत्तर देते हुए बाबा  जी ने बताया कि यही प्रारब्ध कर्म भी कहलाता है प्रारब्ध कर्म ही संकल्प विकल्प कहे गए हैं इसीलिए संकल्प ना करें, सोच कर चलिए की जो मुझे चाहिए परमात्मा मुझे देते जा रहा है और जो मेरा  पुरुषार्थ है, वह कर्म मैं करता जा रहा हूं तो संकल्प बनेगा ही नहीं और उसे पूर्ण करने हेतु बार-बार जन्म भी नहीं लेना पड़ेगा उसे ही मोक्ष कहते हैं
             दाताराम साहू जी ईश्वर अंश जीव अविनाशी.....
.....  के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से कि बाबा जी ने इस दोहे के भाव को स्पष्ट करते हुए बताया कि इस शरीर का प्रारंभ कहां से हुआ था सर्वप्रथम हमें यह शरीर धुले हुए वस्त्र की तरह  मिलता है मनुष्य का जन्म अपने-अपने कर्म के अनुसार प्राप्त होता है संस्कार  परिवार का वातावरण जैसा मिलता है वह वैसे ही रूप में ढलता जाता है कोई बहुत ऊंचा महात्मा बन जाता है तो कोई अपने कर्मों से  गिरता जाता है तब भी आत्मा निष्कलंक निष्पाप रहती है 
केवल वह आपके कर्मों के हिसाब से होती है, और इसी प्रकार वह नवीन शरीर में भी जन्म लेकर उसके पूण्य और पापों की साक्षी बनती है
          माता दुर्गा के अवतरण के विषय में जानने की जिज्ञासा संतोष श्रीवास जी द्वारा की गई, माता रानी के अवतरण के विषय में बताते हुए बाबा जी ने कहा कि, महिषासुर पापी दानव का अंत बहुत कठिन था तब भगवान शिव जी ने अपनी संपूर्ण शक्तियों को एकत्रित करके दुष्ट दलों के संहार हेतु अपनी शक्ति से माता दुर्गा को प्रकट किया और वहां पर उपस्थित सभी देवताओं से यह प्रस्ताव रखा कि आपके पास जो भी दिव्य विशेषताएं हैं जो आपके शक्ति है देवत्व है उसे एकत्रित करके इन्हें समर्पित करें सभी देवी देवताओं ने अपने-अपने तेज सदगुण, वीरता  अच्छाई पुरुषार्थ और संपूर्ण ओज तेज को एकत्रित किया और मां दुर्गा को प्रदान किया तब माता  महिषासुर का वध करके, महिषासुर मर्दिनी कहलाई 
    इस प्रकार आज का ज्ञानपूर्ण सत्संग पूर्ण हुआ
 
खबरी-टी डी मानिकपुरी