ज्ञान के अभाव में मनुष्य, मनुष्य नहीं पशु समान है - संत श्री राम बालक दास जी

ज्ञान के अभाव में मनुष्य, मनुष्य नहीं पशु समान है - संत श्री राम बालक दास जी


प्रतिदिन पाटेश्वर धाम के द्वारा आयोजित होने वाले ऑनलाइन सत्संग में  ज्ञान की धारा का प्रवाह होता है, जिससे मनुष्य मन की पशुता नाश तो होता ही है साथ ही तन मन भी पवित्र हो जाता है प्रतिदिन बाबा जी के द्वारा भक्तों की जिज्ञासाओं का समाधान भी  किया जाता है
             आज तिलक राम मरकाम कोंडागांव ने जिज्ञासा रखी की, गांव में किसी बढ़ते हुए आदमी/व्यपार को जादू टोना टोटका करके उससे गिराना चाहते हैं तो क्या करना चाहिए?, बाबा जी ने बताया कि जिस तरह से गंदगी के पास ही गंदगी आती है, पवित्रता के पास नही वैसे ही यदि आपका मन शुद्ध और विचार पवित्र है आप प्रतिदिन पूजा-पाठ दीप धूप हवन भगवान के विभिन्न रूपों का स्मरण करते हैं तो आपको कभी इस तरह की चीजों का भय नहीं होगा, यह एक अंधविश्वास है विश्वास रखना है तो परमात्मा में करिए ,
      धर्मेंद्र निषाद जी डौंडीलोहारा ने जिज्ञासा रखी की,   महाभारत का एक पात्र एकलव्य है,ग्रंथों में एकलव्य को व्याध राज का पुत्र कहा गया है परंतु गूगल में उसको निषाद राज का पुत्र कहते हैं? कृपया इस संबंध में कुछ बताइए बाबा जी ने बताया कि, प्रथम तो जो हमारे ग्रंथों में वर्णित है उसी तथ्य को हमें सत्य मानना चाहिए क्योंकि यह प्रमाणित होता है,गूगल आदि तथ्यात्मक नहीं होते, हमारे ग्रंथों में उन्हें व्याध राज का पुत्र कहा गया है जो कि बिल्कुल सत्य है एकलव्य गुरु भक्ति का बहुत बड़ा उदाहरण है
          सत्संग परिचर्चा में श्रीमती माया ठाकुर जी डौंडीलोहारा ने , भागवत महापुराण में सुकदेव महाराज जी की कथा आती है उनके संक्षिप्त परिचय जानने की जिज्ञासा रखी, बाबा जी ने बताया कि सुकदेव जी महाराज कृष्ण द्विपायन अर्थात वेद ब्यास महाराज के पुत्र थे जो भगवान श्री कृष्ण के ही अवतार हैं, वेदव्यास जी को ऐसे पुत्र की कामना थी जो संपूर्ण विश्व में  ज्ञान के साथ-साथ भक्ति का भी प्रचार करें, जब  सुकदेव महाराज जी ने माता के गर्भ में वास किया तब उनके जीवात्मा में इतना ज्ञान व्याप्त था कि इस मोह माया वाले संसार में वे आना ही नहीं चाहते थे और 12 वर्ष तक मां के गर्भ से बाहर नहीं आए, तब व्यास महाराज जी ने पुत्र से चर्चा करते हुए कहा कि  पुत्र आप अपनी माता के गर्भ से बाहर आइये और सांसारिक भोगों को भोंगते हुए, परमात्मा का भजन कीजिए सुकदेव  महाराज कहते हैं कि, इस संसार में बहुत कष्ट है जो कि इस गर्भ के कष्ट से बहुत ज्यादा है इसीलिए मैं इस मोह माया के संसार में नहीं आऊंगा, जन्म के बाद  सांसारिक माया, वैष्णवी माया, पंच माया, पंच भौतिक माया, बहुत सारी ज्ञानेंद्रिय और कर्मेंद्रियों के प्रभाव में मनुष्य जीवन आ जाता है, अभी मैं गर्भ में हूं तो मुझे पूर्व जन्म की स्मृतियां है जिनके प्रभाव को मैं जान कर यहां क्षमा याचना और भगवान की भक्ति मां के गर्भ में ही कर रहा हूं तब ब्यास महाराज जी अपने पुत्र से पूछते हैं कि तुम ही मुझे कोई उपाय बताओ कि तुम गर्भ से कैसे बाहर आओगे, सुकदेव जी कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण से यहा विश्वास लेकर आए कि मैं जन्म के बाद इस संसार की मोह माया में नहीं बंधुगा तभी मैं इस गर्भ से बाहर आऊंगा, तब व्यास महाराज भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंचते हैं और उन से विनती करते हैं कि मेरे पुत्र को आप इस संसार में अवतरित होने का आदेश दे और उसकी इच्छा पूर्ति करें, भगवान श्रीकृष्ण स्वयं सुकदेव महाराज जी को वचन देते हैं कि तुम जन्म लेते ही इस मोह माया के संसार से नहीं बंधोंगे  और जैसे ही सुकदेव महाराज गर्भ से बाहर आते हैं तो ब्यास महाराज जी उन्हें यग्योपवित  पहनाने का प्रयास करते हैं तो वे भागते हुए जंगल की ओर चले जाते हैं क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि एक बार उनका किसी भी तरह का सांसारिक संस्कार हो गया तो वे इस संसार के कर्मकांड में फंस जाएंगे इस तरह से भागवत महापुराण में सुकदेव जी महाराज की कथा आती है
    इस तरह सुंदर भजनों के साथ आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ ।

रिपार्ट नरेंद्र विश्वकर्मा