स्त्री के प्रति देवी भाव रखने से विवाह भी ब्रम्हचर्य बन जाता है - संत रामबालकदास जी

स्त्री के प्रति देवी भाव रखने से विवाह भी ब्रम्हचर्य बन जाता है - संत रामबालकदास जी

स्त्री के प्रति देवी भाव रखने से विवाह भी ब्रम्हचर्य बन जाता है - संत रामबालकदास जी

गुरू मनुष्य को ज्ञान भी देते हैं तथा ब्रह्म की ओर ले जाते हैं। सच्चे गुरू ज्ञान को समझाते भी हैं और उसका प्रमाण भी देते हैं। गुरू की महिमा अपरंपार है।
      पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में गुरू की महत्ता पर प्रकाश डालते हुये संत रामबालकदास जी ने कहा कि गुरूजनों की सेवा करने से स्वर्ग, धन - धान्य, विद्या, पुत्र, सुख आदि कुछ भी दुर्लभ नहीं है। श्रीमद्भतगीता हमारे संपूर्ण धर्म का दर्शन है। गीता के नियमित अध्ययन, स्मरण तथा पठन - पाठन से भगवत्भक्ति प्राप्त होती है। जीवन की सभी जिज्ञासायें संतुष्ट होती हैं। तपस्या के कई प्रकार होते हैं। ब्राह्मण, गुरू, माता - पिता की पूजा करना सबसे सरल तपस्या है। सरलता, पवित्रता, ब्रह्मचर्य, अहिंसा को जीवन में धारण करना शारीरिक तपस्या है।

       यथार्थ में तप कई प्रकार के होते हैं। हिमालय में जाकर तप करना, श्वांस रोकना, हठयोग करना ही केवल तपस्या नहीं है बल्कि योग्य ब्राह्मण, सदगुरू, माता - पिता का सम्मान करना भगवान का विग्रह मानकर ही इनकी आराधना करना भी तप है। इनका समुचित आदर करते हुये अपनी बाह्य तथा आंतरिक शुद्धि करें। आंतरिक शुद्धि हेतु शास्त्र सम्मत, विधि सम्मत आचरण करें। समुचित सांसारिक कार्य करते हुये श्रेष्ठ आचरण रखें तो विवाह भी ब्रह्मचर्य का पोषण करने वाला हो जाता है। केवल स्त्री का परित्याग करने वाला ही ब्रह्मचारी नहीं होता बल्कि स्त्री के प्रति देवी भाव रखना भी ब्रह्मचर्य है।

रिपोर्ट // नरेन्द्र विश्वकर्मा