निरंतर अभ्यास और सकारात्मक सोच ही हर कार्य में सफलता का आधार होता है -श्री रामबालक दास
निरंतर अभ्यास और सकारात्मक सोच ही हर कार्य में सफलता का आधार होता है
गीता के ज्ञान से आलोकित ऑनलाइन सत्संग का आयोजन पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा 9 महीने से प्रतिदिन उनके ऑनलाइन ग्रुप सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया जा रहा है, भगवान श्री कृष्ण की वाणी को सुनकर सभी भक्तगण अपना उद्धार कर रहे हैं
आज की गीता चर्चा में बाबा जी ने बताया कि भजन का अधिकार सबको है गीता अध्याय के 30,31 श्लोक में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि अत्यंत दुराचारी भी मेरा भजन करके शीघ्र धर्मात्मा हो जाता है एवं सदा रहने वाली परम शांति को प्राप्त कर लेता है अतः परमात्मा के प्रति समर्पित होकर भजन का अधिकार दुराचारी को भी है,हमारे संसार में धर्म को लेकर बहुत ही भ्रांतियां है जैसे यदि कोई निगुरा है गुरु नहीं बनाए हैं तो उनका चढ़ाया हुआ जल शिवजी ग्रहण नहीं करते तो क्या जो गुरु बनाते हैं उनका चढ़ाया जल सीधे कैलाश चला जाता है तो निश्चित ही ऐसा नहीं है अतः भगवान को भजने का पूजन का अधिकार सबको है, जीव जंतु पशु पक्षी यहां तक कि घुन का कीड़ा भी गलती से राम नाम लिखा है तो भगवान उसे भी अपनी शरण प्रदान कर देते हैं,
रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कहा है कि यदि ब्राह्मण को भी मारकर श्री राम जी की शरण में कोई चला जाए तो प्रभु श्री राम उसे भी अपनी शरण प्रदान करते हैं, रहा हम धर्मात्मा किसे मानते हैं तो जो तीर्थ करता है पूजन करता है तिलक लगाता है परंतु प्रभु कहते हैं कि धर्मात्मा वह है जो पूरी तरह से मेरे प्रति समर्पित हो जो मेरा भजन करें मुझमें श्रद्धा रखें, अतः यदि भगवान को प्राप्त करना है तो उनमें पूर्ण श्रद्धा समर्पण से उनकी शरण को ग्रहण करना चाहिए
आज की सत्संग परिचर्चा में बाबा जी ने बताया कि जिस तरह अभ्यास और वैराग्य से संसार में सब कुछ पाया जा सकता है, तो मनुष्य अपना यह दुर्लभ जीवन इस तरह क्यों व्यर्थ करता है, उसे अवश्य रूप से यह ध्यान रखना चाहिए कि आलस्य करके वह संसार में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता यदि संसार में उसे कुछ पाना है तो उसे दृढ़ निश्चय करना ही होगा, तो मीठा मोती मे ऋचा बहन का संदेश निश्चित ही सार्थक है की "निरंतर अभ्यास और सकारात्मक सोच ही हर कार्य में सफलता का आधार होता है"
इस प्रकार बाबाजी के अति मधुर भजन " चदरिया झीनी रे झीनी....... के साथ आज की सत्संग परिचर्चा पूर्ण हुई
नरेन्द्र विश्वकर्मा