लॉकडाउन में ऑनलाइन सत्संग श्री राम बालक दास
कोरोना काल मे जहां लोग अपने मानसिक संतुलन मैं तारत्म्य नहीं बैठा पा रहे हैं और धार्मिक आयोजन से वंचित है प्रभु की शरण से वंचित है लोगों को एक संतुलित ज्ञान की बहुत अधिक आवश्यकता है लोग इस महामारी में अपने आप को स्थिर रख पाए और इस समय भगवान में विश्वास रखते हुए अपनी दिन को व्यतीत कर पाए इसीलिए पाटेश्वर धाम के संत बालयोगेश्वर महा त्यागी राम बालक दास जी के द्वारा प्रतिदिन 1 घंटे का ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुपों में सुबह 10 बजे से 11 बजे तक किया जाता है और सभी भक्तजन माताएं बच्चे इस ऑनलाइन परिचर्चा में जुड़कर अपनी विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
ऑनलाइन सत्संग परिचर्चा में किरण पांडे जी रायपुर ने आज एकादशी पर जिज्ञासा रखते हुए पूछा कि क्या कृष्ण भगवान को आज के दिन तुलसी पत्र चढ़ाया जा सकता है इस पर बाबा जी ने बताया कि एकादशी के दिन लड्डू गोपाल को तुलसी पत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए परंतु एकादशी के दिन तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए ना ही उनकी पत्ती उतारना चाहिए दूर से ही उनको दीप धूप दिखाकर उनका पूजन किया जाता है आप एक दिन पूर्व ही तुलसीदल उतार कर रख लीजिए और दूसरे दिन उसे प्रभु को चढ़ाईगा
ऑनलाइन सत्संग पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पवन गुप्ता जी चौकी ने जिज्ञासा रखी की पुज्य तुलसीदास के रामचरितमानस मे हनुमान जी की कथा और वाल्मीकि रामायण मे हनुमान जी की कथा को..
किस प्रकार दर्शाया गया है कृपया समाधन करने की कृपा करें... संत श्री ने स्पष्ट किया कि विभिन्न ग्रंथ जो हनुमान जी के चरित्र पर रचित है या कथाएं उद्धृत है, विभिन्न रामायण जो भी रचित है उनमें कथा वर्णन लगभग गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के समान ही है, हमारे वेद पुराण उन्हें स्पष्ट रूप से पूर्ण ब्रह्मचारी एवं पवनतनय ही वर्णित करते हैं जिसमें हम को पूर्ण विश्वास रखना चाहिए बाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और तुलसीदास जी द्वारा रचित रामायण में अंतर यही है कि बाल्मीकि जी ने हनुमान भगवान को पूर्णता चमत्कारिक पुरुष एवं देवत्व प्राप्त राम प्रभु सेवक के रूप में वर्णित किया है जो कि आज के कलयुग के लिए एक मर्यादित पुरुष के रूप में उदाहरण प्रस्तुत करते हैं ताकि लोग जब असंयमित हो तो उनके चरित्र से प्रेरणा प्राप्त करें, भगवान हनुमान जी पूर्ण चमत्कारिक पुरुष तो है लेकिन अपनी सभी लीलाओं का श्रेय भगवान प्रभु राम को ही देते हैं जो कि एक भक्त के सेवक भाव को एवं निस्वार्थ भक्ति को प्रकट करता है, क्योंकि प्रेरणा रहता है कि भक्तों को कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए
रामेश्वर वर्मा जी द्वारा जिज्ञासा रखते हुए निम्न चौपाइयों पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की गई
जे नहीं साधुसंग अनुरागे ।परमारथ पथ बिमुख अभागे।।जे न भजहि हरि नर तनु पाई।जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई
।तजि श्रुतिपंथ बाम पथ चलही।बंचक बिरचि बेष जगु छलही।। इस भाव स्पष्ट करते हुए संत राम बालक दास जी ने बताया कि यह भरत चरित्र का बहुत ही सुंदर प्रसंग है भरत महाराज जी जब अपने मामा घर से अयोध्या को लौटते हैं तो वे अवध को अनाथ हुआ देखते हैं तब माता कौशल्या के सामने जाने में बड़ा ही संकोच महसूस करते हैं उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि क्या माँ यह सोचती होगी कि मैं भी इस षड्यंत्र में शामिल हु, तब माता कौशल्या के चरणों को पकड़कर कहते हैं कि यदि प्रभु राम के वन गमन में मेरा थोड़ा भी हाथ होगा तो मुझ पर वह सभी पाप लगे जो साधु संत सत्संग में नही जाते हैं वहां पर अनुराग नहीं होता उन पर लगता है जो व्यक्ति पुरुषार्थ के मार्ग को छोड़कर स्वार्थ सिद्धि में लगते हैं वह पाप मुझ पर लगे जो यह शरीर पाकर भी भगवान का भजन नहीं करते भगवान की भक्ति नहीं करते कथा नहीं सुनते वह पाप जो होता है वह मुझ पर लगे ऋषि मुनियों की कथा ना सुनकर जो पाप व्यक्ति करते हैं वहां पाप मुझ पर लगे
रिपोर्ट //नरेन्द्र विश्वकर्मा