पंचमहाभूत तीन प्रकार से हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं

पंचमहाभूत तीन प्रकार से हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं


ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास, उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में  निरंतर चल रहा है, जिसमें प्रतिदिन प्रातः 10:00 सभी भक्तगण जुड़ते हैं एवं अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं


 आज की सत्संग परिचर्चा में डूबोवत्ती यादव जी ने जिज्ञासा रखी की,देख ब्रहमा समान सब माहीं ।।इस प्रसंग पर प्रकाश डालने की कृपा हो  , बाबा जी ने बताया कि यह रामायण की चौपाई उनके लिए लागू होती है जो ब्रह्म से ऊपर उठकर अपने स्वरूप को आत्मसात कर लेते हैं, उनका वैचारिक मत होता है कि क्या मरण है क्या जीवन है क्या मान है क्या सम्मान है क्या अपमान है क्या विरोध है क्या धर्म है जो जैसा करेगा वह वैसा ही भरेगा, परंतु व्यवहारिक जीवन में क्योंकि  हम साधक जीवन जी रहे हैं तो हमें कर्म धर्म सभी का प्रभाव पड़ता है हम यह मत लेकर जीवन नहीं जी सकते यह केवल ब्रह्म पर ज्ञानियों के लिए ही स्थापित है

   पाठक परदेसी जी ने प्रार्थना की ;" सृष्टि के निर्माण में सहायक पंचमहाभूत की विशेषता पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन, बाबा जी ने बताया कि इस सृष्टि में पांच महाभूत तीन प्रकार से हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं जब हम पहला जब हम मां के गर्भ में होते हैं दूसरा जब हम जन्म लेते है तो यह हमारे शारीरिक विकास में हमारी आवश्यकताओं को पूर्ति करते हैं और तीसरा कि हमारे वैचारिक और व्यक्तित्व विकास में ये हमारी सहायता करते हैं
       परिचर्चा में रामफल जी ने विषय रखा कि बोले बिहसि  महेश  तब।  ज्ञानी मूढ़  न  कोय।  जेहि जस रघुपति  करहि  जब,  सो तस  तेहि  छन होई।। इस पर प्रकाश डालने कृपा हो प्रभु, बाबा जी इन पंक्तियों के भाव के स्पष्ट करके बताया कि भगवान शिव ने जब माता पार्वती को नारद मोह की कथा सुनाई तो माता चकित रह गई क्योंकि नारद जी उनके गुरु थे और नारद जी को श्राप मिला और उनको मोह होना सुनकर वह बहुत ही ज्यादा चकित हो गई 
तब शिवजी ने  बताया कि यह सब सृष्टि के संतुलन के लिए की गई प्रभु की लीला   का एक अंग है,इसमे ज्ञानी अज्ञानी का कोई स्वरूप ही नहीं है
   जितेंद्र साहू जी ने मातृ पितृ भक्त श्रवण की कथा सुनने की जिज्ञासा बाबाजी के समक्ष रखी तब बाबा जी ने बताया कि यह सर्वविदित कथा है, मातृ पितृ भक्त श्रवण नेत्रहीन माता-पिता का अल्पायु पुत्र था जो कि दशरथ जी के बाण लगने के कारण मृत्यु को प्राप्त हुआ था, यह उसके पूर्व जन्म के ही कर्म थे जिससे वह परिचित था और उसी पूर्व जन्म के कर्मों के भार को कम करने के लिए वह अपने नेत्रहीन माता-पिता को सभी तीर्थों पर ले जाना चाहता था और हो सकता है उसके माता-पिता के भी पूर्व जन्म के कोई कर्म होंगे जो उन्हें अल्पायु पुत्र प्राप्त हुआ था अर्थात कर्म का फल निश्चित ही मिलता 

रिपोर्ट//नरेंद्र विश्वकर्मा