पुरुषोत्तम मास में जप, तप, सत्संग एवं दान का विशेष महत्व होता है

पुरुषोत्तम मास में जप, तप, सत्संग एवं दान का विशेष महत्व होता है

डोंडीलोहरा.


               पुरुषोत्तम मास में जप, तप, सत्संग एवं दान का विशेष महत्व होता है प्रसिद्ध तीर्थ श्री जामडी  पाटेश्वर धाम के सदगुरुदेव श्री राज योगी बाबा जी के संरक्षण एवं संत श्री राम बालक दास जी महत्यागी के सानिध्य में श्री हनुमान नंदी  शाला गो अभ्यारण मैं दिनांक 18 सितंबर से 16 अक्टूबर 2020 तक संगीतमय  श्री पुरुषोत्तम मास कथा एवं रुद्रा अभिषेक, यज्ञ, हवन का कार्यक्रम रखा गया है एक माह पूरा कार्यक्रम श्री पाटेश्वर धाम के युटुब चैनल पर लाइव प्रतिदिन दोपहर 2:00 से संध्या 6:00 तक प्रसारित रहेगा इस कार्यक्रम में 5100 "" 2100 "" या 1100 की सेवा देकर स्वयं उपस्थित होकर या ऑनलाइन घर बैठे कथा यजमान बना जा सकता है

 

सेवा का यह अद्भुत अवसर सभी के लिए सौभाग्य प्राप्ति हेतु श्री संत राम बालक दास जी द्वारा अपने भक्तों को प्रदान किया गया है,  कथावाचक, पूर्णेन्दु तिवारी महाराज जी है,  कथा का वाचन, गौ माता के समक्ष किया जा रहा है. जोकि अद्भुत  दृश्य है, इस पुण्यकार्य में  सहयोग देकर सभी जुड़कर अपने आप को सौभाग्यशाली मान रहे हैं
           

                              साथ ही प्रतिदिन संत श्रीराम बालक दास जी द्वारा, ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 अद्भुत एवं सुंदर रूप में संचालित किया जा रहा है, आज के सत्संग में सतर राम जी ने जिज्ञासा रखी थी,  हम जब भी परिक्रमा करते हैं तो दाई और से ही क्यों करते हैं, संत श्री ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए बताया कि सर्वप्रथम तो आपको यह ज्ञान होना आवश्यक है की परिक्रमा व आरती का भेद जाने बिना जो कोई भी परिक्रमा निराजन करता है उसे किए गए सभी पूण्य से वंचित होना पड़ता है  परिक्रमा हमेशा सुई का कांटा जिस ओर घूमती है अर्थात वह आप के दाहिने हाथ से घूम कर वापस आती है उसी तरह आप जब भी मंदिर, भगवान या माता-पिता की परिक्रमा करे तो अपने दाहिने हाथ से घूमे नहीं तो पुण्य प्रताप सब से वंचित हो जाएंगे
               

              भक्तों ने जिज्ञासा रखी, रामचरितमानस के किष्किंधा कांड के दोहे "धर्म हेतु अवतारेउ गोसाई....... के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की, इस प्रसंग को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि संपूर्ण रामचरितमानस भक्ति कांड वैराग्य कांड अलग-अलग कांडों में विभाजित किया गया है किष्किंधा कांड कर्मकांड से संबंधित है
       

                 इस प्रसंग  मे बाली ने श्री राम जी से कहा कि भगवान रावण को तो मैं भी मार सकता था और सीता जी को मैं भी बचा सकता था तो आपने एक शिकारी की तरह क्यों मेरा वध किया तब भगवान श्री राम जी ने कहा कि तुम पापी हो तुमने पर नारी को कु दृष्टि से देखा है तो प्रथम तुम पापी हुए और मैं कभी भी पापियों को दर्शन नहीं देता दूसरा तुम्हें वरदान प्राप्त है कि तुम्हारे सामने जो भी आएगा उसकी आधी शक्ति तुम्हें प्राप्त हो जाएगी अतः वाली जिसके पास सहस्त्र हाथियों की शक्ति थी और श्री राम जी का यदि आधा बल भी उसे मिल जाता तो वह अजेय हो जाता वह अत्यधिक बलशाली हो जाता प्रभु राम को अपने लक्ष्य प्राप्ति सफलता विजय प्राप्ति हेतु अपार शक्ति की आवश्यकता थी उन्होंने बाली को दर्शन नहीं दिए रामचरितमानस में यह कहीं भी प्रसंग नहीं आता के बाली  को रामजी ने मारा है बल्कि बाली श्री राम जी का परम भक्त था और वह भगवान के दर्शन प्राप्त करते ही अपने मोक्ष प्राप्ति हेतु स्वयं ही प्राण त्याग देता है और जो भी व्यक्ति यह प्रलाप  करते हैं कि बालि को  श्री राम जी ने मारा है सर्वथा झूठ और गलत है
इस प्रकार आज का अद्भुत सत्संग पूर्ण हुआ

आज पुरुषोत्तम मास कथा के पहले दिन मंगलाचरण की कथा हुई
 जय माता जय गोपाल जय सियाराम