यज्ञ से निकलने वाला धुॅआ देता है प्राणवायु - श्री रामबालकदास जी
यज्ञ के धुॅये से सैकड़ों टन आक्सीजन बनता है। यज्ञकुण्ड का धूम्र प्राणवायु को सशक्त करता है। इससे जीव के दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों का शमन होता है। मन की कलुषिता, नकारात्मकता दूर होती है।
वीरेन्द्रनगर में आयोजित श्री सुरभि यहायज्ञ में बाबा रामबालकदासजी ने यज्ञ की महिमा पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सांकल्य के रूप में अनेक दिव्य औषधियों तथा पवित्र वस्तुओं को आम, बड़, पीपल, डूमर, गस्ती, फुड़हर, शमी, चिड़चिड़ा आदि की जलती लकड़ी पर यज्ञकुण्ड में डाला जाता है तो इससे निकलने वाला धुॅआ प्राणवायु प्रदान करता है। हमारी चेतना को जागृत करता है। हम जितनी देर यज्ञ की परिधि में रहते हैं उतना लाभ मिलता है। यज्ञ से पूरे विश्व का कल्याण होता है।
बाबाजी ने कहा कि जीवन में सुख - दु:ख, उतार - चढ़ाव आते रहते हैं लेकिन किसी भी स्थिति में अपना धर्म मत त्यागो। अनेक बार देखने में आता है कि किसी पर कोई संकट आया तो सबसे पहले वह भगवान की पूजा आराधना ही छोड़ता है। कई लोग यह मानते हैं कि भगवान की पूजा आराधना से उनके जीवन में संकट नहीं आयेगा। व्यक्ति छोटी छोटी परेशानियों में डिग जाता है। बाबाजी ने कहा भगवान कभी सुख रूप में आते हैं तो कभी कष्ट रूप में। दोनों ही स्थितियों को भगवान का प्रसाद मानकर ग्रहण कर लेना चाहिये। भगवान कभी राम कृष्ण रूप में आते हैं तो कभी नरसिंह बनकर। नरसिंह रूप में आने पर प्रह्लाद की तरह बनकर नम्र बन जायेंगे तो वे हमें गोद में लेकर चूमने लगेंगे। गुरू और संतों की कृपा में इतनी शक्ति होती है कि प्रतिकूल परिस्थितियाॅ भी अनुकूल बन जाती हैं।
बाबाजी ने कहा कि प्रत्येक पति चाहता है कि पत्नी उसके अनुगामी हो लेकिन क्या वह स्वयं जगतपति का अनुगामी है। दूसरों को बनाने से पहले स्वयं बनें। माताओं से कहा कि अपने बच्चों से प्रेम तो पशु भी करते हैं लेकिन पन्ना धाय की तरह बनोगी तो अमर हो जाओगी जिसने दूसरे के बच्चे की रक्षा में अपने बच्चे का बलिदान कर दिया। बाबाजी ने कहा यज्ञ से संकल्प लेकर जायें कि जीवन में दुर्व्यसन नहीं करेंगे, धर्म नहीं त्यागेंगे, सदाचारी बनेंगे, गौ माता पिता गुरू की सेवा करेंगे, सद्कर्म करेंगे, गौव्रती बनेंगे तभी यज्ञ की सार्थकता है।
रिपोर्ट // नरेन्द्र विश्वकर्मा