साधु मीठे फल के रस की तरह होता है ­- संत श्री राम बालक दास जी

साधु मीठे फल के रस की तरह होता है ­- संत श्री राम बालक दास जी

प्रतिदिन की भांति संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में एवं उनके विभिन्न ग्रुपों में प्रातः 10:00 बजे प्रतिदिन किया जाता है, जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
            बाबाजी के
युटुब चैनल  rambalakdas

 


पर प्रसारित किया जाने वाला बाबा जी की पाती में अभी वर्तमान में बाबा जी के द्वारा उनके बचपन की यादें कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है जिसका भक्तगण प्रतिदिन खूब लाभ एवं आनंद प्राप्त कर रहे हैं, एवं अपने उस आनंद का अनुभव भी प्रतिदिन ग्रुप में प्रेषित किया जाता है जिस पर भी उनकी जिज्ञासा  प्रस्तुत होती है आज भक्त पवन गुप्ता जी चौकी ने बाबाजी से इसी विषय पर जिज्ञासा रखते हुए पूछा कि 
 ...... श्री दादा गुरुदेव मचान वाले बाबा जी की क्या महिमा है और मचान पर रहने का  किस प्रकार की तपस्या है,  महामंडलेश्वर अनंत श्री वैष्णव कुलभूषण कुल वैष्णव स्वामी श्री रामकृष्ण दास महा त्यागी राम हनुमान वाटिका नई दिल्ली 2001 से ही मचान वाले बाबा जी के रूप में विख्यात है क्योंकि वे मचान पर निवास करते हैं और कहीं आते-जाते भी है तो उनके लिए पूर्व में ही यह व्यवस्था बना दी जाती है वे जब भी कहीं जाते हैं तो उनके मचान पर जाए बगैर ना ही वह कोई चीजे ग्रहण करते हैं ना ही जलपान करते हैं जब भी वहां जाते हैं तो पहले स्नान करते हैं फिर यज्ञ करते हैं और फिर प्रायश्चित करके मचान पर जाकर ही कुछ ग्रहण करते हैं  
           परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कन्हैया गबेल जी रामपुर ने रामचरितमानस पर जिज्ञासा रखी की,
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख,धरिअ तुला एक अंग।तूल न ताहि सकल मिलि, जो सुख लव सत्संग।, अति सुंदर पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि सत्संग का प्रभाव हम रामचरितमानस के सुंदरकांड की इन दो पंक्तियों से स्पष्ट रूप से देख सकते है जहां पर इतनी बड़ी और भयानक राक्षसी लंकिनी जो की दुष्ट पापियों को ही लंका में प्रवेश करने देती थी साधु संत को चीटियों की तरह नष्ट कर देती थी वह भी हनुमान जैसे संत के एक  पल के सत्संग के प्रभाव से इस तरह की वाणी कहने लगती है कि सत्संग के एक पल का प्रभाव स्वर्ग में प्राप्त सुख और जो जीवन हम अभी जी रहे हैं उसके बढकर है
                राजकुमार यादव जी कुनकुरी ने निम्न पंक्तियों  को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से की 

धीरज धरम मित्र अरु नारि । आपद कारि परखियेही चारी।।
सांसारिक जीवन में क्या सत्यता है, बाबा जी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी बुद्धि को खंगाल कर चुन चुन कर अपने का मंथन करके जीवन में चार प्रमुख गुणों को बताया है जो कि सांसारिक जीवन में हमें सारे सुख प्रदान कर सकते हैं, हम अपने जीवन में धर्म धीरज मित्र और स्त्री का सानिध्य लेकर चलते हैं तो अवश्य रूप से सफल होंगे, जो धर्म का अनुसरण करता है जो धीरज को धारण करता है जो सच्चे मित्र को प्राप्त करता है और जो  स्त्रियों का सम्मान करता है वह व्यक्ति जीवन में अवश्य सफल होता है, धर्म पर  चलने वाला व्यक्ति कभी भी आसफल नहीं हो सकता, ऐसे ही जो व्यक्ति धीरज रखेगा वही सफलता को प्राप्त करता है उसके लिए धीरज जीवन में उसी गाड़ी के ब्रेक के समान होता है जो हमारी चलती हुई गाड़ी को दुर्घटना से बचाती है यदि जीवन में धीरज नहीं होगा तो  अहंकार उद्दंडता  आ जाएगी, वैसे ही जीवन में सच्चा मित्र मिल जाता है तो वह हर संकट और बुरे समय में हमारे काम आता है और यदि हमने भगवान से मित्रता कर ली तो जीवन में वैसे ही सब कुछ प्राप्त हो जाता है  जितना महत्व हमारे जीवन मे मित्र धीरज और धर्म रखता है वैसे ही नारी भी चाहे वह जिस रूप में हो मां बहन पत्नी हर रूप में वह देवी है जो कभी हम को गलत नहीं होने देती 
        पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखी की 

 साधु कहावन कठिन है, लंबी पेड़ खजूरl
चढ़े तो चाखे है प्रेम रस, गिरे तो चकनाचूरl
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       संत कबीर जी की वाणी पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन कबीर जी की वाणी को प्रकाशित करते हुए बाबा जी ने बताया कि साधु बनने के लिए जीवन में कुछ पाने के लिए सावधानी के साथ साथ गतिमान भी होना पड़ेगा, और जब यह हमारे जीवन में आ जाता है तभी हम लक्ष्य को प्राप्त कर पाते हैं और यदि उसे बीच में ही छोड़ दे तो हम चकना चूर हो जाएंगे वैसे ही साधु की प्रकृति जन्म से ही होती है हर व्यक्ति साधु बनकर नहीं जन्मता वह मीठे फल के रस की तरह होता है जो लोगों के जीवन में रस भर देता है और यदि वह साधु ना बन पाए तो उसका जीवन तो व्यर्थ होता ही है साथ ही वह पथभ्रष्ट हो जाता है

            अरुण पांडे जी आमगांव ने निम्न पंक्तियों को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की 
       अर्थ न धर्म न काम रूची गती न चहहु निर्वाण। जनम जनम रती राम पद यह वरदान न आन।।,

             बाबा जी ने बताया कि हम भगवान की भक्ति तो करते हैं पूजा तो करते हैं लेकिन मन में कुछ ना कुछ स्वार्थ लेकर ही प्रभु के पास जाते हैं ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए यह तो हम उसी तरह करते हैं कि हम मजदूरी कर रहे हैं और भगवान हमें उसके बदले कुछ ना कुछ दे रहा है तो हम भक्त कैसे हुए हम तो भगवान के लिए मजदूर हुए ना, मजदूर क्यों बन रहे हैं आप भक्त बने भगवान के पास जाइए तो निस्वार्थ भक्ति करे इन पंक्तियों में भरत जी यही कहते हैं कि मुझे धर्म अर्थ मोह माया कुछ नहीं चाहिए मुझे सिर्फ सियाराम चाहिए

रिपोर्ट//नरेन्द्र विश्वकर्मा