सबके कल्याण की भावना रखने वाला ही शिव पूजा का अधिकारी संत रामबालकदास जी

सबके कल्याण की भावना रखने वाला ही शिव पूजा का अधिकारी संत रामबालकदास जी
सबके कल्याण की भावना रखने वाला ही शिव पूजा का अधिकारी संत रामबालकदास जी

,सबके कल्याण की भावना रखने वाला ही शिव पूजा का अधिकारी संत रामबालकदास जी

 निष्क्रिय, कर्तव्य विमुख, आलसी, स्वार्थी जीव जीवित होने के बावजूद भी शव के समान हैं। सबके कल्याण की कामना करने वाला ही शिव स्वरूप है।

थांखम्हरीया// के जमात मंदिर में शव और शिव तत्व का भेद बताते हुये संत श्री रामबालकदास जी ने कहा कि शव से ऊपर हो जाने वाला तत्व ही शिव है। मानस में जीवित रहते हुये भी 14 प्रकार के शवों की व्याख्या की गयी है। नियम, संयम छोड़कर जीवन जीने वाले लोग ही शव हैं। गृहस्थ जीवन को सर्वश्रेष्ठ जीवन बताते हुये कहा कि संसार छोड़कर परमार्थ पथ पर चलता है वह वीर है तथा गृहस्थ जीवन में अपना धर्म निभाते हुये परमार्थ मार्ग पर चलने वाला महावीर है। संत भगवान ने कहा कि शिव बनना आसान नहीं है। जो मान - अपमान, सुख - दुख की परवाह किये बिना समाज की बुराई रूपी हलाहल का पान कर उसी समाज को अमृत पिलाये वही शिव बन सकता है।

शिव जी इतने भोले हैं कि सहज ही भक्तों पर प्रसन्न हो जाते हैं। वर्तमान समय में व्यक्ति की सहनशीलता का ह्रास हो चुका परिवार में छोटी छोटी बातों पर बड़ा संग्राम होने लगा है। अनेक प्रतिकूल परिस्थियों, बातों को हलाहल की तरह पीया जाये तो प्रत्येक परिवार शिव परिवार बन सकता है। शिव परिवार में हम देखते हैं कि सिंह, नंदी, चूहा, मोर, सर्प आदि विपरीत स्वभाव वाले जीव होने के बावजूद वे निर्भीक होकर रहते हैं उसी प्रकार आसुरी वृत्तियाॅ त्यागकर हमें समाज में समान भाव से रहना चाहिये। हमेशा सबके कल्याण की भावना हमारे मन में रहनी चाहिये। कांवड़ यात्रा के संबंध में बाबाजी ने कहा कि यह प्रकृति को शिव से मिलाने की साधना है। सावन मास में ही भगवान शिव की पूजा की अधिक महत्ता पर बाबाजी ने कहा कि बारहों महिने भक्तिभाव से शिव पूजा करें। पूजा शुद्धता, पवित्रता से करें। 

पाटेश्वरधाम पर रचे जा रहे कुचक्र के संबंध में बाबाजी ने कहा कि संत समाज का प्रेरक, मार्गदर्शक होता है। संत, साधक और परमात्मा के मिलन की कड़ी होता है। संत को कमजोर, असहाय कर दिया जाये तो सुचारू व्यवस्था, परंपरा, मान्यता पर असंतों का कब्जा हो जाता है। इसलिये विध्वंशकारियों द्वारा सबसे पहले संतों एवं उनकी आस्था के केन्द्रों पर हमला किया जाता है। पाटेश्वरधाम किसी विशेष जाति, पंथ का मंदिर नहीं बल्कि समरसता का प्रकाश फैलाने वाला केन्द्र है।

यहाॅ से एक रंगत, एक संगत, एक पंगत की भावना का प्रसार समाज में हो रहा है। आसुरी शक्तियों का डटकर मुकाबला करना होगा तथा सनातन समाज को खण्डित करने का मंसूबा पालने वाले लोगों का सामूहिक शक्ति के साथ लोहा लेना होगा। प्रारंभ में महाराज जी का महंत बसंतबिहारीदास, पं ओमप्रकाश जोशी, डा आर पी शर्मा, अनिल सिंघानिया, राजेन्द्र बिंदल, सुरेन्द्र सिंघानिया, सुरेश सिंघानिया, पुरूषोत्तम अग्रवाल, श्रवण सिंघानिया, काशी अग्रवाल, मुकेश सिंघानिया, जितेन्द्र साहू, शंभू प्रसाद पाटिल, शिवेन्द्र बिंदल, गोदावरी मिश्रा, पूरन कश्यप, ध्रुव साहू आदि ने पुष्पहार से स्वागत किया। 

समाचार,विज्ञापन व सुझाव के लिए

 [email protected]

संपर्क

 मो:-

7089094826

9302694826

क्रमशः अगला खबर के लिए डाउनलोड करें गुगल एप

 https://play.google.com/store/apps/details?id=com.cg.newsplus