क्यों धारण करते है त्रिशूल कालो काल महाकाल - रामबालकदास जी

क्यों धारण करते है त्रिशूल कालो काल महाकाल - रामबालकदास जी

जिसमें विभिन्न जिज्ञासाओ का आदान प्रदान हुआ एक जिज्ञासा के उत्तर में श्रीराम बालक दास जी ने बताया कि भगवान शिव द्वारा त्रिशूल धारण करने के अनेक रहस्य है
 भगवान शिव स्वयं कालों के काल महाकाल हैं। पूरे ब्रह्माण्ड की संपूर्ण शक्ति और ऊर्जा के स्रोत हैं। ब्रह्माण्ड के सभी ग्रह, नक्षत्र और तारे शिव में ही समाहित हैं। भगवान का तीसरा नेत्र संपूर्ण श्रृष्टि में प्रलय कर सकता है।
             सृष्टि के सृजन, संचालन और संहार के मूल में शिव ही हैं फिर भी वे त्रिशूल धारण क्यों करते हैं पुरूषोत्तम अग्रवाल की इस जिज्ञासा का समाधान करते हुये बाबा रामबालकदास जी ने आनलाईन सतसंग में बताया कि शक्ति और शिव के मिलन की ही उपज सृष्टि है। इसके बावजूद शिव त्रिशूल धारण करते हैं। जिनका उग्र रूप ही सृष्टि का विनाश है उनको त्रिशूल रखने की क्या आवश्यकता। इसके रहस्यों को उजागर करते हुये बाबा जी ने कहा कि संतों ने इसका अलग - अलग महत्व एवं कारण बताया है। प्रथम - भोले बाबा का त्रिशूल सतगुण, रजगुण और तमगुण इन त्रिगुणों का प्रतीक है जिनके मिलने और अलग होने से ही सृष्टि की उत्पत्ति एवं प्रलय होता है। दूसरा - त्रिशूल के तीन शूल सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के प्रतीक हैं। तीसरा - त्रिशूल जीव के तीन प्रकार के कष्टों दैहिक, दैविक और भौतिक का विनाश करता है। चौथा - त्रिशूल तीनों कालों वर्तमान, भूतकाल और भविष्यकाल का प्रतीक है।
       भगवान शिव को किसी अस्त्र - शस्त्र की क्या जरूरत जिनका तीसरा नेत्र खुलते ही संपूर्ण सृष्टि में प्रलय हो सकता है। शिव तो ऐसे कल्याणकारी देव हैं जिन्होने समाज से तिरस्कृत जीवों, और वस्तुओं को अपनाया है। विषधर सर्प, बिच्छू आदि जिन्हें देखते ही लोग उसे दुश्मन समझकर मार देना चाहते हैं शिव ने उन्हें अपनाया। अपूजित हो गये चंद्रमा को मस्तक पर स्थान दिया। हलाहल विष का पान किया।