सच्चा परिवर्तन है मानव का उत्थान : महात्मा सुजाता बाईजी।

संपादक: आर के देवांगन

सच्चा परिवर्तन है मानव का उत्थान : महात्मा सुजाता बाईजी।
सच्चा परिवर्तन है मानव का उत्थान : महात्मा सुजाता बाईजी।

सच्चा परिवर्तन है मानव का उत्थान : महात्मा सुजाता बाईजी।

मानव उत्थान समिति जिला बालोद द्वारा दो दिवसीय संगीतमय श्री राम कथा सत्संग समारोह का किया गया आयोजन।

बालोद । मानव उत्थान सेवा समिति जिला बालोद द्वारा राम मंदिर प्रांगण अर्जुन्दा में दो दिवसीय 16 एवं 17 जनवरी को संगीतमय श्री रामकथा संत्सग समारोह का आयोजन किया गया जिसका शुभारंभ मंगलवार को शाम 4 से भजन कीर्तन के माध्यम से किया गया जो 7 बजे तक चला।

जिसमें मानव धर्म के प्रणेता सद्गुरु देव श्री सतपाल जी महाराज की शिष्या आत्म अनुभवी महात्मा सुजाता बाई (बद्रीनाथ), महात्मा भुवनेश्वरी बाई जी (काशी), महात्मा महादेवी बाई जी, जो कि देव भूमि हरिद्वार से पहुंचे है।

जो गीता, रामायण, वेद, पुराण, उपनिषद भागवत एवं धर्म ग्रंथों में वर्णित सर्व व्यापक परमात्मा के सत्य नाम एवं ज्योति स्वरुप को जानने के लिए सत्संग द्वारा प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं।

अर्जुंदा में हो रहे दो दिवसीय संगीतमय श्री राम कथा सत्संग समारोह में बद्रीनाथ से पहुंचे महात्मा सुजाता बाईजी ने सत्संग सुनाते हुए कहा कि संसार में मानव एक शिशु के रूप में आता है।

शनैः-शनैः उसकी अवस्थाएँ बदलती जाती हैं।

बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था तथा इसके बाद वह इस संसार से एक दिन कूच कर जाता है। यह सब स्वाभाविक प्रक्रिया, परिवर्तन होता है। इस तरह का परिवर्तन पशु-पक्षी, जीव-जंतु सबमें देखने को मिलता है। फिर मानव से कौन-से परिवर्तन की अपेक्षा की जाती है? मानव चोला क्यों मिलता है? परमपिता परमात्मा जीव पर कृपा करके उसे मानव का चोला प्रदान करते हैं, ताकि वह अपने आपको परिवर्तित कर सके। अपने को विकारों से मुक्त कर सके। अपनी आत्मा पर चढ़े हुए मल-विक्षेप के आवरण को साफ कर सके।

इस आवरण को साफ करते ही मनुष्य विकारों से मुक्त हो जाता है तथा वह अपने आत्मस्वरूप का दर्शन करता है। यही मानव में सच्चा परिवर्तन है।

यही मानव का उत्थान है।

इसलिए तुलसीदास जी ने कहा कि - "अरब खरब लो सम्पदा उदय अस्त लौ राज।

जो तुलसी निज मरण है आवे कोने काज।।"

इसलिए उस पूर्ण ब्रह्म, परब्रह्म परमात्मा का ज्ञान देने के लिए परमसत्ता का प्रकटीकरण गुरु रूप में आदिकाल से होता आया है।

उस परब्रह्म का ज्ञान सद्गुरु से प्राप्त कर हम संपूर्ण परिवर्तन अर्थात् परम शांति को प्राप्त कर सकते हैं।

अतः इस परिवर्तनशील संसार में आत्मा जो परमात्मा का अंश है, जो अविनाशी है, जो अपरिवर्तनशील है, उसका ज्ञान प्राप्त कर ही हम संपूर्ण परिवर्तन की स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। हम भी समय के महानपुरुष श्री सतपाल जी महाराज के सान्निध्य में बैठकर अपने अहंकार को समर्पित कर आत्मज्ञान को प्राप्त करें और अपने हृदय में परिवर्तन कर परम शांति का अनुभव करें तथा दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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