लखीमपुर खीरी सियासत से चमके CM भूपेश और चन्नी.

लखीमपुर खीरी सियासत से चमके CM भूपेश और चन्नी.
लखीमपुर खीरी सियासत से चमके CM भूपेश और चन्नी.

लखीमपुर खीरी सियासत से चमके CM भूपेश और चन्नी.

 उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में 4 किसानों सहित 8 लोगों की मौत के बाद सियासत सुलगी हुई है. कांग्रेस बैठे बिठाए हाथ लगे इस सियासी मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं. खुद प्रियंका गांधी ने इस पूरे आंदोलन की कमान संभाल रखी है. प्रियंका को सपोर्ट करने के लिए अब राहुल गांधी भी मैदान में उतर चुके हैं. भाई-बहन यूपी की सियासत के रास्ते अपनी सियासी पकड़ मजबूत बनाना चाहते हैं और कांग्रेस में नई जान फूंकना चाहते हैं. लिहाजा किसानों के मुद्दे पर आवाज बुलंद कर रहे हैं.

राहुल गांधी के 2 नए सिपाही

 खास बात यह है कि राहुल गांधी के लखीमपुर खीरी दौरे पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और पंजाब के सीएम चन्नी भी साथ हैं. यही राहुल गांधी के 2 नए सिपाही हैं.

 चन्नी-भूपेश ने जाते ही रंग जमाया

 छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और पंजाब के सीएम चन्नी ने उत्तरप्रदेश में किसानों के लिए आर्थिक मदद का ऐलान किया. भूपेश बघेल ने लखीमपुर में मारे गए पत्रकार सहित सभी लोगों को अपनी सरकार की तरफ से 50 लाख रुपये देने की घोषणा की. पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने भी लखीमपुर के मृतक किसानों और मृतक पत्रकार के परिवार को 50 लाख की आर्थिक मदद देने का एलान किया.

 भूपेश का सिलेक्शन क्यों?

 छत्तीसगढ़ में चल रही सियासी हलचल के बीच कांग्रेस ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है. लिहाजा वो सीनियर ऑब्जर्वर होने के नाते राहुल गांधी के साथ हैं. भूपेश इससे पहले असम चुनाव में भी कांग्रेस के लिए बेहतर काम कर चुके हैं. लिहाजा उन पर दोबारा विश्वास जताया गया है. जानकारों की मानें तो यूपी के अनुभव के जरिए भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों के लिए भी तैयार किया जा रहा है ताकि छत्तीसगढ़ में भी किसान वोटरों को साधा जा सके और चुनाव में एक बार फिर बड़ी जीत हासिल की जा सके.

 चन्नी को क्यों चुना?

 पंजाब में दलित-हिंदू वोटर (Dalit-Hindu Voters in Punjab) पर कांग्रेस का फोकस है. पंजाब में करीब 70 फीसदी दलित-हिंदु वोटर हैं. इन वोटर्स को साधने के लिए चन्नी को शामिल किया गया है. पंजाब में पहली बार किसी दलित सिख को मुख्‍यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने इस वर्ग के वोटरों को लुभाने की पूरी कोशिश की है. चन्नी न सिर्फ दलित बल्कि सिख भी हैं. पंजाब में करीब 32 फीसदी जनसंख्या दलितों की है. पंजाब में जाट सिखों की संख्या महज 25 फीसदी है, लेकिन राज्य की राजनीति में इनका एकाधिकार रहा है. खास बात यह है कि पंजाब की 75 फीसदी आबादी किसानी से जुड़ी है. कांग्रेस एक बड़े किसान नेता के रूप में चन्नी को तैयार करना चाहती है ताकि यूपी के अनुभव को उन्हें पंजाब में फायदा मिल सके. पंजाब में कुल विधानसभा सीटें - 117

 अर्बन - 40

 सेमी अर्बन - 51

 रूरल - 26

 पंजाब में सेमी अर्बन और रूरल पर किसान असरदार हैं. यानी कुल 77 से ज्यादा सीटों पर किसान वोट बैंक का डोमिनेंस है. कुल मिलाकर पंजाब में किसानी मुद्दा नहीं मजबूरी है. राज्य की 75% आबादी खेती से जुड़ी है. विधानसभा की दो-तिहाई सीटों पर किसान वोट हार-जीत तय करता है.

 यूपी में कितना बड़ा है दलित वोट बैंक?

 ओबीसी समुदाय के बाद दलित वोट की यूपी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है. यूपी में 42-45 फीसदी ओबीसी हैं, उसके बाद 20-21 फीसदी संख्या दलितों की है.

 क्या सिद्दू से आगे निकले चन्नी?

 कांग्रेस हाईकमान ने दिग्गजों से कन्नी काटकर चन्नी को CM बनाया ताकि गुटबाजी से बच सकें और वोटरों को भी साध सकें. खुद नवजोत सिंह सिद्धू ने चन्नी को सीएम बनाने की पैरवी की, लेकिन अब चन्नी सियासी पिच पर सिद्धू से आगे निकलते दिख रहे हैं. सिद्धू ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के खिलाफ पार्टी के कई विधायकों के साथ सोमवार को चंडीगढ़ में राजभवन के बाहर प्रदर्शन किया. लेकिन जब राहुल गांधी के साथ जाने की बारी आई तो सिद्धू के बजाए चन्नी को साथ लिया गया.

 क्या भूपेश बघेल की कुर्सी जाने वाली है?

 देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में 2022 के फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं. कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को यूपी की जिम्मेदारी सौंपी है. भूपेश बघेल की गिनती प्रियंका गांधी के करीबियों में होती है. ऐसे में वह विधानसभा चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी के सहयोगी की भूमिका में रहेंगे.

 सियासी आसमान में यह खबर भी तैर रही है कि भूपेश बघेल को बड़ी भूमिका इसलिए दी गई है ताकि छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को सत्ता सौंपी जा सके. पिछले दिनों ढाई-ढाई साल के सीएम के फॉर्मूले और विधायकों की दिल्ली परिक्रमा ने सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं को भी बल दिया है.