प्लास्टिक प्लेटों का उपयोग, पंगत की परंपरा खत्म होने की ओर,आजीविका पर असर

प्लास्टिक प्लेटों का उपयोग, पंगत की परंपरा खत्म होने की ओर,आजीविका पर असर
प्लास्टिक प्लेटों का उपयोग, पंगत की परंपरा खत्म होने की ओर,आजीविका पर असर

प्लास्टिक प्लेटों का उपयोग, पंगत की परंपरा खत्म होने की ओर,आजीविका पर असर

बालोद - सभी सामूहिक कार्यक्रम, विवाह समारोह आदि प्लास्टिक कचरा पैदा करने का बहुत प्रमुख स्रोत बने हुए हैं, क्योंकि सामूहिक भोजन में उपयोग किए जाने वाले पत्तल, दोने, गिलास या प्लेट सभी प्लास्टिक, थर्माकोल या कागज से निर्मित होकर आ रहे हैं। प्रत्येक समारोह होने के पश्चात कार्यक्रम स्थल से भारी संख्या में प्लास्टिक का कचरा निकलता है। वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को बदलना चाह रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में चाहे शहर हो या गांव, बदलाव देखा जा रहा है। पहले शादी हो या अन्य कोई भी कार्यक्रम, पंगत में बैठकर पत्तलों में खाने की परंपरा थी। कतार की कतार बैठी पंगतें, पत्तल, दोनों में भोजन परोसा जाता था। भोजन क्षेत्र की परंपरा का खास हिस्सा रहा है।वर्षों पूर्व प्लास्टिक कटोरी, प्लेट आदि का उपयोग व्यापक नहीं था। विवाह से लेकर भंडारों तक में दोना-पत्तल काम में लिए जाते थे, लेकिन अब पंगत में बैठ कर खाने की प्रथा कम होती जा रही है। अब इन पत्तलों पर भी आधुनिकता की मार पड़ने लगी है। अब थर्माकोल और प्लास्टिक के पत्तल पत्तों से बने पत्तल को उसकी जगह से धीरे- धीरे बेदखल करते जा रहे हैं। सदियों से विभिन्न वनस्पतियों के पत्तों से बने पत्तल संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं। कोई भी सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक उत्सव इनके बिना पूरा नहीं हो सकता था। इन समारोहों में आने वाले अतिथियों को इन पत्तलों पर ही भोजन परोसा जाता था। लेकिन अब ये पत्तल खत्म होने लगे हैं।

प्लास्टिक प्लेटों का उपयोग

 असंगठित क्षेत्र के पत्तल उद्योग से मजदूरों की आजीविका जुड़ी है। अब पत्तों से बने पत्तलों का चलन धीरे-धीरे कम होने लगा है। आधुनिकता की मार से परेशान है। ग्रामीण इलाकों में तो पत्तलों पर भोजन की परंपरा अब भी कुछ हद तक बरकरार है लेकिन शहरों में इसकी जगह कांच या चीनी मिट्टी की प्लेटों ने ले ली है। समारोहों में बफे पार्टी का प्रचलन बढने की वजह से भी पत्तों से बने पत्तल अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। जहां दो दशक पहले पत्तल का कारोबार 100 प्रतिशत था, अब 25 प्रश रह गया है।

पंगत की परंपरा खत्म होने की ओर

 वर्तमान में पंगत में बैठकर भोजन करने की परंपरा सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में देखी जा रही है। अब आधुनिक युग में स्वरुचि भोज को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। बफे सिस्टम एवं प्लास्टिक प्लेट, कटोरी चलन के बाद दोना पत्तल सिमट से गए। हालांकि भंडारे, अन्नकूट में आज भी दोना पत्तल ही चलन में है। पत्तल का प्रयोग अब ज्यादा नहीं रहा, पर दोना अभी अपनी साख बचाए हैं।

 आजीविका पर असर

 लोगों का कहना है कि इसके पूर्व ग्रामीणों द्वारा विभिन्न वनस्पतियों के पत्ते से पत्तल तैयार कर शहरों में बेचकर अपने परिवार की आजीविका चलाई लेकिन अब प्लास्टिक की पत्तलों के कारण उनका व्यवसाय पूरी तरह से ठप्प हो गया है, इससे उन्हें खाने के लाले पड़े हुए हैं।