मां सरस्वती  कला विधाओं की संरक्षक है अर्थात हममें जो भी कला है वह मां सरस्वती प्रदत है,, राम बालक दास

 मां सरस्वती  कला विधाओं की संरक्षक है अर्थात हममें जो भी कला है वह मां सरस्वती प्रदत है,, राम बालक दास


संत राम बालक दास जी का ऑनलाइन सत्संग अपने भक्तजनों के लिए प्रतिदिन आयोजित किया जा रहा है जिसमें सभी भक्तगण प्रतिदिन जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
     आज के सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की बाबाजी, देवी भागवत में उल्लेख मिलता है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस,छंद, शब्द व शक्ति की प्राप्ति जीव को हुयी थी। कृपया इस पर प्रकाश डालेंगे।, बाबा जी ने बताया कि मां  सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी है, जिसे ज्ञान और विद्या की देवी माना गया है। वाग्देवी, भारती, शारदा आदि नामों से पूजित माँ सरस्वती के बारे में यह कहा जाता है, कि ये मूर्ख व्यक्ति को भी विद्वान बना सकती हैं। मां सरस्वती को  कई नाम से पुकारा जाता है  जैसे

भारती,सरस्वती,शारदा,हंसवाहिनी,जगती,वागीश्वरी,कुमुदी,ब्रह्मचारिणी,.बुद्धिदात्री,वरदायिनी,चंद्रकाति,भुवनेश्वरी। विद्या बुद्धि एवं संगीत की उत्पत्ति करने के कारण उनको संगीत की देवी भी कहा जाता है एवं माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस,छंद, शब्द व शक्ति की उत्पत्ति मां सरस्वती ने की थी मां सरस्वती हमें कला विधाओं की संरक्षीका है अर्थात हममें जो भी कला है वह मां सरस्वती प्रदत है,शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा सरस्वती देवी  का स्वरूप अदभुत है
   
        बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना ।अधम कवन जग मोहि समाना ।।

          रिपु रन जीती सुजस सुर गावत ।सीता सहित अनुज प्रभु आवत ।।

          प्रति उपकार करौं का तोरा ।सनमुख होई न सनत मन मोरा ।।

इन प्रसंगो पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी से की गई बाबा जी ने बताया कि यहां भक्त और भगवान के बीच का अद्भुत प्रसंग है जो कि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा उद्धृत किया गया है, भरत जी कहते हैं कि प्रभु के वियोग में एक पल भी मृत्यु के समान वियोग की दशा है, और श्री भरत जी महाराज के वियोग विलाप में बीच में एक हर्ष उद्घोष की आवाज आती है, हर्षोल्लास के साथ उद्घोष होता है श्रीराम आ गए राम आ गए, सब दौड़ पड़े हैं जो जैसा था वह वैसा ही दौड़ पड़ा है सब अपनी सुधि ही श्री राम के स्वागत में भूल गए हैं, पूरा अवध खाली हो जाता है, सभी नंदीग्राम की और श्री राम माता सीता और अनुज लक्ष्मण का स्वागत करने के लिए दौड़ पड़ते हैं, और प्रभु राम को भी पता है कि उनके वियोग में भरत का  क्या हाल हो रहा है और इन सब को हर्षित होने का श्रेय प्रभु श्री राम हनुमान जी को दे देते हैं कि आज मैं यहां लौट पाया हूं यहां हनुमान की कृपा है, यह हनुमान नहीं होते तो हम नहीं होते लखन नहीं होते सिया नहीं होती और तुम नहीं होते भरत ,,
 इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग बाबा जी के लता मंगेशकर जी को श्रद्धांजलि देते हुए उनके सुमधुर गीत,,, रहे ना रहे हम ,,,के साथ संपन्न हुआ

 नरेन्द्र विश्वकर्मा की खास रिपोर्ट