*आखिर जनता का नेता कौन?* लोक लुभावने वादे आखिर कब तक हर बार की तरह जनता इसके बाद भी असंतुष्ट नजर आ रही है आखिर क्यू *जातिवाद के जाल से कैसे बचे मतदाता*? *विजय पारख जिलाध्यक्ष शिवसेना बालोद *

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*आखिर जनता का नेता कौन?* लोक लुभावने वादे आखिर कब तक हर बार की तरह जनता इसके बाद भी असंतुष्ट नजर आ रही है आखिर क्यू  *जातिवाद के जाल से कैसे बचे मतदाता*? *विजय पारख जिलाध्यक्ष शिवसेना बालोद *
*आखिर जनता का नेता कौन?* लोक लुभावने वादे आखिर कब तक हर बार की तरह जनता इसके बाद भी असंतुष्ट नजर आ रही है आखिर क्यू  *जातिवाद के जाल से कैसे बचे मतदाता*? *विजय पारख जिलाध्यक्ष शिवसेना बालोद *

 

        *आखिर जनता का नेता कौन?* लोक लुभावने वादे आखिर कब तक हर बार की तरह जनता इसके बाद भी असंतुष्ट नजर आ रही है आखिर क्यू

*जातिवाद के जाल से कैसे बचे मतदाता*? *विजय पारख जिलाध्यक्ष शिवसेना बालोद *

   बालोद- *जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र संजारी बालोद , डौंडी लोहारा और गुंडरदेही में विधानसभा निर्वाचन 2023 का आगाज हो चुका है।

   तीन विधानसभा क्षेत्र में एक डौंडी लोहारा आरक्षित है वहीं संजारी बालोद व गुंडरदेही अनारक्षित।

   परंतु अनारक्षित दोनों सीट एक तरह से ओबीसी आरक्षित सा हो गया है जहाँ दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों से ओबीसी आरक्षित प्रत्याशीयों को मौका दिया जाता रहा है।

   बावजूद इस बार के विधानसभा चुनाव में जनता असंतुष्ट नजर आ रही है* जनता की मुद्दों के अलावा केंद्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी, महत्वाकांक्षी योजनाओं के असफल क्रियान्वयन,निरंकुश प्रशासनिक अव्यवस्था, अवैध नशे के बेतहाशा कारोबार,

    सत्ता संगठन की दूरियाँ‌ और विकास में मची भर्राशाही। बेरोजगारों के लिए बेरोजगारी भत्ता सहित प्लेसमेंट कैंप, समाधान तुंहर द्वार जैसे आयोजन विज्ञापनों में अधिक छाये रहे धरातल कम असरदार।*

  *निर्माणाधीन नेशनल हाईवे सहित शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों के सड़कों की दुर्दशा केंद्र व राज्य सरकार के जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता से गुणवत्ता हीन है गढ्ढों से भरे हैं।*

  *हर घर नल जल योजना में अनियमितता, स्कूली शिक्षा, भवन, शिक्षकों की अव्यवस्था सरकार को मुँह चिढ़ा रही है।* *फिर भी सौ प्रतिशत सफल उपलब्धियों के विज्ञापनों से प्रदेश की दिवारें पटी रही।* *नगरीय निकायों में विपक्ष की भूमिका शुन्य रही है परंतु चुनाव आते ही राजनैतिक दलों की सक्रियता बढ़ गई।*

  *कमीशनखोरी पूर्व की सरकारों से प्रदेश में चर्चित और चिंतनीय विषय रहा है इस बार भी इसमें कोई कमी नहीं आई।* *जातिवाद के झुरमुट में वोटरों को फँसाने और

    जनता को गुमराह करने का खेल इस बार भी हावी है। विभिन्न संगठन, दल जातिवाद की राजनीति से अपने राजनैतिक पैर पसारने मैदान में उतर आये हैं जिन्हें जनहित के मुद्दों पर सफलता नहीं मिली।

  जातिवाद के दाँव से असल मुद्दे गौण हो जातें हैं और फिर पाँच साल जनता पिसते रहती है, क्षेत्र विकास को तरसते रहता है।* *पार्टियाँ भी अपने नेता के बाहुबली हो जाने,‌ कहीँ कई मूर्तियों में फंस कर रह जाने और कहीं सफेद झूठ के पुलिंदे से कराहती सोचती है पब्लिक का नेता कौन? जननेता कौन?*

 

रिपोर्ट खास :- अरुण उपाध्याय बालोद

मो:- 94255 72406

 

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