साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से
साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से
प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़ उत्तरायण
मैं उत्तरायण की यात्रा पर निकल गया। रास्ते में विभिन्न प्रकार के दृश्य दृष्टिगोचर होते रहे। छोटे-छोटे अन्य चक्र (स्टेशन) भी दिखाई पड़े। परंतु मेरी गाड़ी वहां नहीं रुकी। कुछ संत-महात्मा अधिक चक्रों का भी वर्णन किए हैं। ऐसा समझना चाहिए कि वह भी सत्य कहते हैं। झूठ की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है। वे धीरे-धीरे चल रहे हैं या पैसेंजर ट्रेन पर सवार हैं। पैसेंजर गाड़ी छोटे-छोटे स्टेशनों पर रुकती चलती है। परंतु राजधानी तो प्रमुखतम एवं आवश्यक स्टेशनों पर ही रुकेगी। आप कैसी गाड़ी पर सवार हैं--यह आपके श्रद्धा-प्रेम है भक्ति के साथ-साथ गुरु अनुकंपा पर निर्भर करता है।
गुरु तो विशेष परिस्थिति में विशेष साधक को हवाई जहाज पर बैठा कर सीधे गंतव्य स्थान पर भी उतार सकता है। रास्ते के सारे मार्ग एवं स्टेशन देखते रह जाएंगे की इसकी गाड़ी इससेे होकर गुजरेगी। हमारे स्टेशन पर रुकेगी। यात्री यहां विश्राम करेगा। अतएव चक्रों की संख्या ज्यादा बताकर अपने को ज्यादा चतुर समझना दूसरों को मूर्ख समझना कतई उचित नहीं है।
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